मैं स्वयं पर निर्भर करता हूँ
अंगारों के पथ पर चलता हूँ
इस माया के संसार में मुझको
क्या खोना क्या पाना है ?
मैं खुश हूँ अपने आप मैं ही
ना ओरों की होड़ में करता हूँ..................
निकला हूँ एक तलाश पे मैं
जो डूब गया उसे पाने की
इस जीवन के तम् मार्ग पे मैं
सूरज को खोजा करता हूँ................
मैंने अपनी इन आँखों से
लोगों को बदलते देखा है
वो कहते हैं मुझको बागी
जब अपनी मर्ज़ी से चलता हूँ.................
तुम चाहो मुझको अपना लो
तुम चाहो मुझको ठुकरा दो
टिकता ही नहीं एक रात कहीं
पल पल मैं दिशा बदलता हूँ................
कुछ कहते हैं मुझको पागल
कुछ कहते हैं दीवाना हूँ में
इस कारण जलते हैं मुझसे
की जो चाहता हूँ कर गुज़रता हूँ...............
nice blog
उत्साह को दिखाती व उत्साह को भरने वाली रचना. शुक्र्यिया. जारी रहें.
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उल्टा तीर पर पूरे अगस्त भर आज़ादी का जश्न "एक चिट्ठी देश के नाम लिखकर" मनाइए- बस इस अगस्त तक. आपकी चिट्ठी २९ अगस्त ०९ तक हमें आपकी तस्वीर व संक्षिप्त परिचय के साथ भेज दीजिये. [उल्टा तीर] please visit: ultateer.blogspot.com/
जीवन के आरोहण पर बहुत सुंदर गीत रचना है, ऐसे ही किन्हीं शब्दों से में खोया रहा करता था कभी " हम दीवानों की क्या हस्ती है आज यहाँ कल वहां चले, मस्ती कालम साथ चला हम धूल उडाते जहाँ चले..." तस्वीरें भी बहुत नेचुरल और अपीलिंग हैं. लिखतेरहिये.
कुछ कहते हैं मुझको पागल
कुछ कहते हैं दीवाना हूँ में
इस कारण जलते हैं मुझसे
की जो चाहता हूँ कर गुज़रता हूँ...
अच्छी काव्य रचना के लिए आभार
शुभमगलभावो सहीत
खमत खामणा का महत्व