जाने क्या एक दिन हमारे मन मैं आई
कि दिल ने हास्य कविता लिखने की इच्छा जताई
सोचा की किस विषय को आधार बनायें
तो याद आई देश की बढती महंगाई
लिखने के लिए कलम उठाया
तो उस पर पारकर लिखा पाया
सोचा इसकी स्याही व्यर्थ नहीं गँवायेंगे
हम साधारण पेंसिल से ही काम चलाएंगे
लिखने को पन्ने उठाये
तो मेरे भाई बहन दोनों चिल्लाये
दीदी यह क्या करती हो A4 sheet कंप्यूटर
के लिए है इसे क्यूँ ख़राब करती हो
मैं बोली एक अदद पन्ने से तुम्हारा क्या जाएगा
इस बहाने मेरे विचारों को आधार तो मिल जाएगा
पलट के जवाब आया विचारों के पैसे थोड़े ही लगते हैं
पर यह पन्ने महंगे हैं मुफ्त मैं नहीं मिलते हैं
मैं थोडा जुन्झ्लाई ,मगर फिर मुस्कुराई
एक पद ही लिखा था की मुझे प्यास लग आई
मैं गयी रसोई को और लौट के आई
देखा की पिताश्री कक्ष मैं पधारे हैं
और मेरे लिखे पन्ने पे मां से हिसाब लिखवा रहे हैं
अब मेरी सहन शक्ति का बाँध टूट गया
लिखने चली थी हास्य कविता और रोना छूट गया
मन मैं ठाना की अब कभी
हास्य कविता के लिए कलम नहीं उठाऊंगी
मां बोली तू दुखी क्यूँ होती है
तेरा विवाह हास्य कवी से ही करवाऊंगी
बहुत सुन्दर कविता प्रियंकाजी।
अन्तिम लाईनों में तो हंसी आ गई।
good one beta....
hahaa..quite funny