देश से बाहर निकला तो यह खबर हुई
कि मेरे देश की हालत खस्ता बहुत हुई
चंद पैसों की खातिर बन गए हैं दुश्मन सभी अपने
की गैरों की बात क्या करें...अपनों की हद हुई
लगता है ज़रुरत पड़ेगी अब फरिश्तों की
मसीहा खुद ही लूट रहे हैं अस्मत जो ज़मीं की
मेरे करने से कौन सा फर्क पड़ेगा?
मसीहा खुद ही लूट रहे हैं अस्मत जो ज़मीं की
मेरे करने से कौन सा फर्क पड़ेगा?
हर एक नौजवां की सोच आखिर ऐसी क्यूँ हुई?
बिक गया है देश सियासी खेल के हाथों
क्या आज की जनता को यह खबर भी ना हुई?
अब यूँ ही बैठना तो मुमकिन नहीं होगा
कोशिश करे कोई तो क्या... हासिल नहीं होगा?
पर कोशिश करने की कोशिश ही भला क्यूँ कम हुई?
a very sad state of the nation.. in this era of capitalism all we care for is our pay packages.. nation doesnt matter!!
kya khoob latada aapne apne style main...wahhhh
bt har nojawan ek sa nahi hota !!
just came across your blog:) love what ur blog pic says. cant really read hindi tht well .would have loved to understand them though:)
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