सदियों से सदा......... मेरा शोषण हुआ
मन साफ़ था फिर भी.... आँचल मेरा मैला हुआ
मैंने तुम्हारे सम्मान की खातिर... क्या.. ना किया ?
तुम्हे पूजा... और स्वयं... विष अपमान का पीया
ये विषपान करके भी... मैं अनंत हूँ!
मैं स्वतंत्र हूँ !
वो पदमिनी हूँ जिसने... निर्भीक हो जौहर किया
वो जानकी हूँ जिसने... सदा स्वयं को अर्पण किया
में शक्ति हूँ परंतु फिर भी..... मैंने सब सहा
हर मोड़ पे अगनि परीक्षा दी... पर कुछ भी ना कहा
ऐसी अखंड लौ हूँ जो.. आँधियों में भी ज्वलंत हूँ!
मैं स्वतंत्र हूँ !
मैंने आप खोकर.... तुमको नया आकार दिया
खुद बलिदान हो.... तुम्हारे सपनों को साकार किया
तुम्हारी जीत के पीछे... हमेशा मैं खड़ी थी
हर विषम परिस्तिथी से .. अकेली ही लड़ी थी
तुम नहीं समझे... तुम्हारी विजय का मन्त्र हूँ !
मैं स्वतंत्र हूँ !
मैं जननी भी... मैं पत्नी भी ...सहेली भी ... मैं भगिनी भी
मैं पृथ्वी भी... मैं अगनि भी...जो तुम चाहो.... मैं सब कुछ हूँ
ना रोको!.. जो मैं बढती हूँ .. तुम्हारे साथ चलती हूँ !
अहम् त्यागो और पहचानो.... मैं तुम्हारा संबल हूँ !
क्रांति की लहर है जो... नारीत्व का वो नवीन अर्थ हूँ !
मैं स्वतंत्र हूँ !
Excellent. If all women start thinking like you, the world will be changed. Keep it up.