जिस दश्त से तू गुज़रे.... उसे फूलों से सजा दूँ
ये आग जो भड़की है.... उसे और लगा दूँ
तू आज मुझे जी भर के..... देख लेने दे ज़रा
इस नज़र में वो असर है... कि पत्थर पिघला दूँ
दुनिया की फिकर ना कर.... ये दुनिया तो... भरम है
जो थाम ले तू हाथ मेरा ...,में अपनी अलग एक.... दुनिया ही बसा दूँ
पेशानियों पे लिखा है............ गर नसीब तो
जो तुझसे.. जुदा करे... वो लकीर मिटा दूँ
कौन कहता है कि... तनहाई का ताल्लुक है ग़म से
तेरी यादों से... तनहाई की महफिलें सजा दूँ
ज़ाया हुआ है.. बहुत वक़्त... तेरी आरज़ू में ऐ-हबीब
हर एक पल जो बाक़ी है.. तेरे सदके... मैं लुटा दूँ
कौन कहता है कि... तनहाई का ताल्लुक है ग़म से
तेरी यादों से... तनहाई की महफिलें सजा दूँ
very nice
V.Well Written.