तेरे नाम से वा-बस्ताह मुझे मानने लगे हैं ..
इस शहर के लोग .. अब मुझे पहचानने लगे हैं ...
मेरे चेहरे की रौनक में. .. तेरा नूर दीखता है ...
ये क्या हुआ है मुझको ...ये कैसा करिश्मा है ..
निगाहों में बस गया है ...चुपके से अक्स तेरा ...
मुझसे जुदा हुआ है ... हौले से सुकून मेरा ...
अब लोग पूछते हैं ...सवाल कई मुझसे ...
हर बात जोड़ते हैं .. मेरी बेकली की तुझसे ....
कैसा अजब नशा है...अब होश ही कहाँ है ...
दास्तान मेरे दिल की ...जानता मेरा खुदा है ...
दीवानगी ये तेरी ...बन गयी है उलझन मेरी ..
जी चाहता है फ़ना होना ..मोहब्बत में सनम तेरी ...
इस बेखुदी में सब कुछ ... हम हारने लगे हैं
इस शहर के लोग .. अब मुझे पहचानने लगे हैं ...
वा-बस्ताह - attached,bound together
बेकली - Restlessness
वाह सुंदर रचना है.
इस बेखुदी में सब कुछ हम हारने लगे हैं
इस शहर के लोग अब मुझे पहचानने लगे हैं
मनाभावों को आपने बखूबी एक सुंदर कविता का रूप दिया है...बधाई।
जय माँ दुर्गा जी की!
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
प्रेमरस मे डुबी आप की यह सुंदर रचना, धन्यवाद
तेरे नाम से वा-बस्ताह मुझे मानने लगे हैं ..
इस शहर के लोग .. अब मुझे पहचानने लगे हैं ..
खुबसूरत शेर बहुत बहुत बधाई
Mana ke abhi bhe surkhiyon main nahi hu
Per do char dekh mujhe muskurane lage hai
Iss shahar ke log mujhe pahchan ne lage hai
: shishir
bahut khub
achhi lagi aapki rachna
bhadhaye
kabhi yaha bhi aaye
www.deepti09sharma.blogspot.com
इस बेखुदी में सब कुछ ... हम हारने लगे हैं
इस शहर के लोग .. अब मुझे पहचानने लगे हैं
और कुछ हार ही तो जीत होती है. शायद यह रास्ता ही हार और जीत से परे है
सुन्दर रचना
bahut suder
आप सब को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीकात्मक त्योहार दशहरा की शुभकामनाएं.
आज आवश्यकता है , आम इंसान को ज्ञान की, जिस से वो; झाड़-फूँक, जादू टोना ,तंत्र-मंत्र, और भूतप्रेत जैसे अन्धविश्वास से भी बाहर आ सके. तभी बुराई पे अच्छाई की विजय संभव है.
तेरे नाम से वा-बस्ताह मुझे मानने लगे हैं ..
इस शहर के लोग .. अब मुझे पहचानने लगे हैं ...
bahut khoob khas tour par shuru ki ye do pagtiya....!!
likhte rahiye!!
Jai HO Mangalmay HO