एक दिन मैं ऑफिस जा रहा था
और रोज़मर्रा की तरह झुंझला रहा था
एक निरीह आदमी मुझे देखे जा रहा था
और कुछ सोचते हुए मुस्कुरा रहा था
काफी देर बाद उसने अपनी चुप्पी तोड़ी
बोला आप नाहक ही परेशां हैं जबकि
आपकी तनख्वाह है ज्यादा और हमारी थोड़ी
मैंने कहा तनख्वाह से परेशानी का क्या रिश्ता ?
टेंशन तो मुझे देर से पहुँचने का है
वरना मैं भी यहाँ खड़ा खड़ा हँसता
इससे तो कम मैं तुम्हारी तनख्वाह मैं पिसता
वो बोला अगर ऐसा है
तो चलो नौकरी बदल लेते हैं
आप मजदूर बन जाओ
हम कंप्यूटर कर लेते हैं
मैंने....... व्यंग्य से कहा
कंप्यूटर सीखना बड़ी टेडी खीर है
वो मुस्कुरा के बोला मजदूरी कर लीजिये
दो दिन और फिर कहिये कैसी तकदीर है ?
बात ज़रा देर से ही सही.. मुझे समझ मैं आई
मैंने उसकी तरफ संवेदना से देखा और हमदर्दी जताई
उसने कहा........ आप मुझ पे तरस ना खाइए
पर खुद को जाके... किसी डॉक्टर को दिखाइए
बोला हम मजदूरी मैं......... पसीना बहते हैं
और उसी के........ कतरे - कतरे से खाते हैं
आपके तो .......... पसीने से भी खुशबू आती है
फिर भी ना जाने आप लोगों को कैसी चिंता सताती है ?
मैंने उस से............. सबक लिया
और फिर अपने ऑफिस को लपक लिया
मुझे फिर से लेट देख बॉस गुर्राया
पर फिर भी............ मैं मुस्कुराया
उसने गुस्से से कहा क्या तुम समय पे नहीं आ सकते
मैंने कहा आप ये बात प्यार से नहीं बता सकते
वो बोला तुम्हे पता है तुम्हारा बॉस तुम्हारे सामने खड़ा है
मैंने हंसकर पूछा क्या आपका कभी किसी मजदूर से पाला पड़ा है ??
A thoughtful reflection...
i read a while back, "I was crying since I had no footwear, till I saw a person ho had no foot."