मेरी मंजिल के सफ़र तक सिर्फ मेरी तनहाई थी
मेरी हमसफ़र कोई और नहीं .. मेरी परछाई थी ....
चल पडा था ढूढने ..... अपना ठिकाना
ना साथी , ना राहबर , न... कोई बेगाना
धुंधली सी एक रूह... मेरे पीछे पीछे आई थी
जो देखा तो जाना... वो मेरी... परछाई थी ....
मैंने फ़िक्र नहीं की .. चाहे ग़म हो या ख़ुशी ..
मुझे हर आशना मिला .... जैसे कोई अजनबी ..
पर खलवत मैं भी जैसे किसी ने आवाज़ लगायी थी
में पलटा तो देखा ... वो मेरी परछाई थी ....
फिर वो मुकाम आया , सब खोया जो था पाया
मैं रोया चिल्लाया , पर कोई भी ना आया ...
जब घोर अंधेरा था ... और वीरानी सी छाई थी
वहीँ पे खड़ी थी .. वो मेरी परछाई थी ...
कभी गिरा कभी दौड़ा , कभी ठहर गया थोड़ा
कभी गिरा कभी दौड़ा , कभी ठहर गया थोड़ा
बड़ी अज़ीयत मैं भी ... मैंने हौसला न छोड़ा ...
अपने आप ही मैंने नदामत की दिवार गिराई थी
जो साथ थी मेरे हरदम .. वो मेरी परछाई थी
अब दिन संवर गए हैं... मौसम बदल गए हैं
सारवत के हमारी अब .. आलम नए नए हैं
मेरी बरक़त को देख... वो होले से मुस्कुराई थी
कोई ओर नहीं............ वो मेरी परछाई थी
आशना - acquaintance
खलवत - Solitude, Isolation
अज़ीयत- Trouble, Difficulty
नदामत - Guilt, Regret, Repentance
सारवत - wealth, prosperity
सारवत - wealth, prosperity
a very beautiful expression of emotions.. very touching indeed...
मेरी हमसफ़र कोई और नहीं .. मेरी परछाई थी ...
बहुत खूब... बेहतरीन रचना..
Good.. one....... TO be very honest... you must think about poetry or photography as a profession. :)
Amazingly beautiful..... Writing...photgraphy is all about showing hidden emotions..depth of thoughts... you have got that gal...keep it up.. and congratulations for possesing this rare talent. :)