ख्वाबों से आ गयी थी
वो हकीकत के धरातल पे......
अब देख कर में उसको
क्या ओरों को देख पाता....
कोमल थी कामिनी सी
धवल थी चांदनी सी ....
दीदार पा के उसका कोई
और कुछ ना चाहता ......
कुछ बात तो थी उसमें
कैसे में भूल जाता....
कुछ बात ना थी मुझमे
जो उसको याद आता ........
खुदा कि इनायत थी ,
जो उसके साथ बिताये पल......
मिलती ना झलक उसकी
तो मैं जीते जी मर जाता ..........
तो मैं जीते जी मर जाता ..........
वैसे तो हसीनों की
जहाँ में कमी नहीं है
पर वो शोखियाँ, वो नखरे
ओरों में कहाँ पाता ............