ज़ख्म जो मोहब्बत ने दिए थे... दोस्ती ने भरे हैं
हालात.. ये मेरे.. , मेरी समझ के परे हैं ......
शिकायत करूँ तो किस से?. वो क्या समझेंगे हाले दिल ...
की मेरे जान के पीछे ..... मेरे अपने ही पड़े हैं .......
हिम्मत नहीं... कि.. फिर किसी से दिल्लगी करें ..
बड़ी मुश्किलों से... दिल के ये घाव भरे हैं .....
तू कौन है ?.., कब था?.. मैंने सब भुला दिया
अब नयी मंजिलों की और मेरे पाँव बढे हैं .......
अफ्सुर्दगी मैं सराबोर, हूँ,.. मगर फिर भी
उम्मीद भी कायम है और हौसले भी बड़े हैं ....