मेहताब में फूल खिल गया जैसे
मुझे ओ हमदम तू मिल गया ऐसे
शोखियाँ घटाओं की अब बेढंग लगा करती हैं
गुलशन मैं कलियाँ भी बेरंग लगा करती हैं
सागर की मौजों मैं अब वो मज़ा नहीं
तेरे आने से इनका नूर छिन गया जैसे
चांदनी भी हमसे नज़र चुराती है
मेरे महबूब के हुस्न से शर्माती है
चाँद भी अब बुझा सा लगता है
उसकी रौनक को तुने चुरा लिया जैसे
तेरी खुशबू मैं ऐसी है कशिश
जैसे उगते हुए सूरज की तपिश
हवा भी अब ना बलखाती है
तेरी जुल्फों से जलती हो जैसे
मेरी हालत है उस परवाने सी
शमा की आस किया करता है
लौ को देख मचलता है ऐसे
कोई बिछडा हुआ मिल गया जैसे
itni saralta se kaise ...kaise itna achha baya kar pate ho...apne bhawo ko saral shabdo ki mala kaise banate ho.....
Jai Ho Mangalmay ho