तूफ़ान से नहीं घबराते हैं
मुश्किल मैं निखर जाते हैं
हम तो वो आंधी हैं जो
पर्वत से गति पाते हैं
ना जलते हैं अंगारों से
ना जलते हैं अंगारों से
ना रुकते हैं दीवारों से
जब आ जाएँ अपनी पर तो
गर्दिश मैं जीत के आते हैं
साथी की नहीं हमें अभिलाषा
साथी की नहीं हमें अभिलाषा
ना रखते दुनिया से आशा
जब चलते हैं मंजिल के लिए
तो साए ही साथ निभाते हैं
लिख दें खुद किस्मत की रेखा
लिख दें खुद किस्मत की रेखा
कल का सूरज किसने देखा
हम ऐसे आतिश हैं जो
अंधेरों से रौशनी पाते हैं
:))) lakshaya to har haal main paana hain!!
very inspiring and with deep feelings!! very emotional! keep up the poems!
wahhh wahhh bahut khooob every time when i come at ur blog i got lot of positive things keep going yaar ...nice poem !! its really inspired me ...
Jai HO manglmay ho
Shubh depawali to u and ur family
वाह वाह.....
ऐसी हिम्मत तो किसी को भी मंजिल पर पहुँचने से नही रोक सकती.....
सुन्दर.... रचना......
बहुत सुंदर है ख़ास कर सायों की वफादारी पर पहली बार पढ़ा तो बड़ा अच्छा लगा वरना शायरों ने तो साये को बदनाम ही कर रखा है. खूबसूरत !!
लिख दें खुद किस्मत की रेखा
कल का सूरज किसने देखा
बहुत सुन्दर और हौसलो को सम्बल देती रचना
हम ऐसे आतिश हैं जो
अंधेरों से रौशनी पाते हैं
.... very inspiring..