मिलन के पथ पे चले थे..विरह* की भी रात होगी…
दूर जाकर भी कभी..इस मधुर क्षण* की बात होगी..
साथ बीते मित्रता के पल कभी जब याद होंगे…
हर्ष के कुछ कण मिलेंगे और कुछ अवसाद* होंगे
साथ बीता यह समय बन जाएगा संबल* हमारा
जान लूं परिचय तुम्हारा....
कौन कब तक ज़िन्दगी मैं साध* लेकर चल सका है
जो दिया है नियति ने वो ही सभी को मिल सका है…
मैं भला क्या हूँ…जो चिर मिलन का सपना संजोउन..
श्वांस की बिखरी लड़ी को किस तरह से मैं पिरोउं
आज से हर स्वप्न मैं, में नाम लिख दूँगा तुम्हारा
जान लूं परिचय तुम्हारा……
प्रेम जीवन की सहज अभिव्यक्ति बन के ही पला है…
सृष्टि के आरम्भ से ही चल पड़ा यह सिलसिला है..
हो जहाँ बंधन वहीँ तो मुक्ति का आभास होगा..
दूरियां ना हों तो कैसे विरह का एहसास होगा…
चल पड़ी है लहर तब तो मिल ही जाएगा किनारा…
जान लूं परिचय तुम्हारा……
बहुत सुंदर दीखते हैं गगन के शत शत सितारे…
सच नही होते मगर, इस ज़िन्दगी के स्वप्न सारे…
दूर तक चल के भी राहों में अकेले छूट जाते..
कौन जाने किस तरह से पाश मन के टूट जाते…
मन अकेला रह गया है साथ है संसार सारा…
जान लूं परिचय तुम्हारा……
Written by :
डॉ निधि तेलंग (Mom)
Glossary : विरह – Separation; नियति – destiny; क्षण – moment;
अवसाद – sorrow; संबल - motivation; श्वांस - breath
अवसाद – sorrow; संबल - motivation; श्वांस - breath
Bahut sunder dikhte hain gagan ke shat shat sitaare…
Sach nahi hote magar is zindagi ke swapn saare…
bful lines!!!!
very bful poem... i think if u write these poems in the hindi script they'll have a beauty on thr own... it's a hindi poem after all!!
very true...
"हो जहाँ बंधन वहीँ तो मुक्ति का आभास होगा.."
btw....would like to say..Love in it's purest form is free from any desire to break free and yet long for or rather seek completeness in the same.