ज़िन्दगी तुझसे कई उम्मीदें लगा बैठे हैं।
क्या कहें ख्वाहिशें क्या दिल में सजा बैठे हैं।
ग़म से तोड़ दिए हमने.............. पुराने रिश्ते
बेपरवाह होके........... नए रिश्ते बना बैठे हैं।
शोर न समझो... मेरी सांसों के बदलते सरगम को
ये साज़ हम.............. बरसों से दबा बैठे हैं।
क्या मिला है किसी को.… साहिल पे खड़े होकर
हम तो लहरों पे....... नयी राहें बना बैठे हैं।
ये वक़्त भी देखना बाकी था..... ऐ हमदम
की अफसाना-ऐ-हस्ती का मेरी.... लोग किस्सा बना बैठे हैं।
लुत्फ़-ऐ-हयात तो... गर्दिश मैं ही समझ आता है
गुज़र जायेंगे हर मुश्किल से... ये शर्त लगा बैठे हैं।
ज़रा बहती हुई हवा का रुख पहचानो।
इसमें कुछ लोग... हर चीज़ गँवा बैठे हैं।
ज़िन्दगी चुरा ले गयी...... वक़्त मेरे हाथों से
अब आखिरी दाव ज़िन्दगी का.... लगा बैठे हैं।
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