तेरे नाम से वा-बस्ताह मुझे मानने लगे हैं ..
इस शहर के लोग .. अब मुझे पहचानने लगे हैं ...
मेरे चेहरे की रौनक में. .. तेरा नूर दीखता है ...
ये क्या हुआ है मुझको ...ये कैसा करिश्मा है ..
निगाहों में बस गया है ...चुपके से अक्स तेरा ...
मुझसे जुदा हुआ है ... हौले से सुकून मेरा ...
अब लोग पूछते हैं ...सवाल कई मुझसे ...
हर बात जोड़ते हैं .. मेरी बेकली की तुझसे ....
कैसा अजब नशा है...अब होश ही कहाँ है ...
दास्तान मेरे दिल की ...जानता मेरा खुदा है ...
दीवानगी ये तेरी ...बन गयी है उलझन मेरी ..
जी चाहता है फ़ना होना ..मोहब्बत में सनम तेरी ...
इस बेखुदी में सब कुछ ... हम हारने लगे हैं
इस शहर के लोग .. अब मुझे पहचानने लगे हैं ...
वा-बस्ताह - attached,bound together
बेकली - Restlessness