कुछ बीती हुई यादें हैं
कैसे मैं जला दूँ ?
कुछ टूटे हुए वादे हैं
कैसे मैं निभा दूँ ?
में मिटा भी दूँ अतीत
पर क्या कभी तुम ना पूछोगे ?..
जो कुछ मुझ पे बीती है ..
तुम क्या ही समझोगे ?
मैं गिर गिर के सम्हला हूँ ..
किस तरह राहें सजा दूँ ?
जिस लिए खामोश हुआ था
वो राज़ कैसे बता दूँ ?
मैं जिस मंजिल को बढ़ रहा हूँ
क्या तुम साथ चलोगे ?
अगर राहें भटक गयीं
तो क्या फिर से मिलोगे ?
तुम मेरी ज़रूरत हो ..
कैसे ये जता दूँ ?
में डरता नहीं हूँ पर
तुम्हे क्या क्या मैं बता दूँ ?...
नहीं कहता तो संग-ऐ दिल..
जो कह दूँ तो रुसवा हूँ
अजब कशमकश में उलझा हूँ
ये किस मंजिल पे पहुंचा हूँ
अभी हालात नहीं हैं ..
कि जज़्बात बयान हों
कभी फुर्सत मैं तुम मिलो तो ..
ये समंदर भी खला दूँ
तू मेरी हस्ती की वजह है
जो तू नहीं तो मैं नहीं
तुम मुझे हासिल नहीं तो क्या
मैं तो तुमसे जुदा नहीं ...
कोई अफ़सोस तो नहीं है
पर आसां भी नहीं कि
अपनी हकीकत को भुला दूँ
जो सज़ा मेरे लिए लिखी है
वो तुम्हे कैसे सुना दूँ ?