ज़िन्दगी आखिर.... तेरी वजह क्या है ?
मेरी आरज़ू अगर तू है... तो फिर तलब क्या है?
हर एक मोड़ पे... मकाम नया दीखता है !
हर मकाम पे लेकिन ... ये नया मोड़ क्या है ?
ना बीती है ना .. बची है जो
ये दास्तान अधूरी है जो ....
मेरी मंजूरी तो नहीं है
पर ये मजबूरी क्या है ?
ज़िन्दगी हाथों से रेत की तरह ... क्यूँ फिसलती है?
हर आहट पे ये तन्हाई ... क्यूँ और भी मचलती है ?
गर सांसों से ही बंधा है ... जीने का सबब ...
तो इस दिल के ... धड़कने का ... भला मतलब क्या है?
मेरे तरसते ख्वाबों को भी समझाए कोई
क्या मज़ा ...सजा हँस के काटने मैं है .. बताये कोई ?
मेरी आँखों को ..पहले से ही खबर थी .. मेरे सपनों की
खलल जो नींद मैं .. आया तो ...गलत क्या है?
जो उम्मीद पे ही कायम है ये जहां ...
तो मेरे कन्धों का बोझ भी ... तो उतारे कोई ..
तम्मानाये जब होती हैं टूटने के ही लिए
तो बेवजह झूठे दिलासे की ज़रुरत क्या है।
ज़िन्दगी आखिर तेरी वजह क्या है ?.
मेरी आरज़ू अगर तू है... तो फिर तलब क्या है?